Monday, November 2, 2009

मुनाफे में काटडा बेच दिया

हंसी मजाक, मेंस -काटडू, डांगर, डंगराका मेला , ये सब ग्रामीण जीवन का खास हिंसा हैं !मेरे भी गाँव की एक बिलकुल सच्ची घटना याद आगी!एक बार म्हारे पड़ोस का लड़का, नाम था कड़कु , नया २ न्यारा हुआ था एकाध मेंस-काटडू बेचे, ते आपने आप ने पशुआं का वयोपारी समझन लाग गया एक बार झाझर रोड रोहतक में पशुआँ के मेले में चल्या गया !भिड़ते ही पारवे मुसलामानों धोरे एक सस्ता सा काटडा ले लिया !कड़कु ने सोची , काटडा सस्ता थ्याया रह्या से, बेच के आड़े ऐ दो पिस्से कमा ले ने!५० रपिए मुनाफे में काटडा बेच दिया ! बेचेने के बाद कड़कु ने देखा, अक ठीक होगया काटडा डिगा दिया उसका जबाडा बड्डा था, चरया भी ना जावे हे !आड़े ताहिं ते बात ठीक थी पर कड़कु के मस्करी करण के जी में आगी! जिन तंही काटडा बेचाया था फेर उडेऐ चल्या गया ! सोची मेले का काम से भूलगे होंगे के पिछाने सेंकाटडे में टुक से या बात उन ने भी देख ली थी बोल्या भाई काटडा बेचो सो ? बोले हाँ भाई बेचां सां !काटडे के ओरे धोरे चक्कर काट के कड़कु बोल्या भाई कटड़ा ते अच्छा से पर न्यू बताओ यो चरे क्यूकर पिछान उन ने भी लिया !वे भी कई कूंगर थे अरर उत भी बोले , लेलो रे आगया , यो इ था इस हूडले काट्डे ने म्हारे तंही चेप गया था !मंड के ऊत, लात , घुसे , अछि सोड सी भर दी !जिब सांझ ने कड़कु गाम आया , ते अडोसी पडोसी पूछें , अरे कड्कले यो के हाल हो रया से ?कड़कु बोल्या यो हाल ना से यो बेज्नस का मुनाफा से !!!

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