Thursday, July 16, 2009

हमारा खरगोश मर गया

एक दिन जब संता घर लौटा तो उसने देखा कि उसका कुत्ता पड़ोसी के पालतू खरगोश को मुंह में दबाये भागता चला आ रहा है। किसी तरह उसने कुत्ते से खरगोश को छुड़ाया। परन्तु खरगोश मर चुका था। यह सोचकर कि कहीं पड़ोसी ने देख लिया तो बवाल खड़ा कर देगा, वह खरगोश को फौरन घर के अंदर ले गया। अंदर ले जाकर उसने खरगोश को अच्छी तरह नहला कर साफ किया। उसके बाल संवारे ताकि कुत्ते के दांतों के निशान दिखाई न दें और पड़ोसी की नजर बचाकर वापस उसके पिंजरे में रख आया ताकि पड़ोसी समझे कि वह अपनी स्वाभाविक मौत मरा है।
कुछ दिनों बाद, एक सुबह, उसकी पड़ोसी से मुलाकात हुई। पड़ोसी ने संता को बताया - भाईसाहब, पिछले दिनों हमारा खरगोश मर गया ?
- कैसे ? कब ? आखिर हुआ क्या था उसे ? संता ने अनजान बनने का ढोंग करते हुए पूछा ।
- क्या हुआ था यह तो पता नहीं । एक दिन उसने अचानक खाना पीना बन्द कर दिया और अगले दिन मर गया। पड़ोसी ने बताया।
- च..... च........ बहुत बुरा हुआ। संता ने अफसोस जाहिर किया।
- हां ..... उसके बाद तो और भी बुरा हुआ । पड़ोसी ने कहा।
- अच्छा ? उसके बाद क्या हुआ ?
- जिस दिन खरगोश मरा था हमने उसी दिन उसे अपने बगीचे में एक जगह गाड़ दिया था मगर उसके अगले दिन न जाने किस कम्बख्त ने उसे वहां से निकाला, नहलाया-धुलाया और वापस पिंजरे में रख आया ...... !

No comments: